बस यू ही थोडा सा.....
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ज़िन्दगी की इस भाग-दौड़ में हमारे पास शायद नैतिकता के लिए समय नहीं बचा है। क्या हम कठोर होते जा रहे है या ये सब सिर्फ दिखावा है माडर्न बनने का।
बचपन में नैतिक शिक्षा का विषय पढाया जाता था जिससे की हमारा आचरण सुद्रढ़ हो। हमारा व्यवहार अच्छा हो।
आज किसी को भी लीजिये कुछ भी बोल के चला जाता है और यकिनन ये सब पढ़े लिखे लोग है। कम से कम अनपढ़ तो कोई नहीं।
संसद, लोकतंत्र का मंदिर होता है अगर वहां भी प्रधानमंत्री को अगर भाषा की शालीनता के बारे में बोलना पड़ जाए तो हमारी इस व्यस्त लाईफ के कोई मायने नहीं रह जाते।
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